संपादकीय
सबसे पहले तो आप सबसे माफी मांग लें की यह न्यूजलेटर दो हफ्ते देर से निकल रहा है। बिहार मे विधान सभा के चुनाव प्रचार मे रामपरी व्यस्त थीं, मध्य प्रदेश के उप चुनाव मे संध्या व्यस्त थीं, मंजीत को करोना ने ले दबोचा, और जाहिर है की इनकी मदद के बगैर, न्यूजलेटर का निकलना संभव नहीं है। एक तरह से यह अच्छा भी हुआ क्योंकि हम इन दोनों राज्यों के चुनावो के नतीजो के बारे मे रामपरी और संध्या के लेख भी आप तक पहुंचा सके हैं। बिहार के चुनाव मे महागठबंधन की बढ़त, एन डी ए के वोटों का कम होने के बावजूद सरकार बनाने मे सफलता (जिसमे बेईमानी ने भी उनकी मदद की) महत्वपूर्ण रहे लेकिन हमारे लिए सबसे बड़ी बात है संयुक्त वामपंथ (जो महागठबंधन का हिस्सा था लेकिन जो कई सालों से बिहार मे मिलकर अभियान और संगर्ष चला रहे हैं) की जबरदस्त सफलता। विधान सभा मे एक मजबूत विपक्ष के तौर पर यह ताकत रंग लाएगी और बाम पंथ के आगे बढ्ने के तमाम रास्ते खोज निकालेगी। वामपंथ की सफलता का देश भर मे स्वागत हुआ है और तमाम लोगों को मानना पड़ा है की वाम पंथ जिंदा है और उसका जिंदा रहना प्रजातन्त्र को मजबूत करने के लिए अनिवार्य है।
एक और गलती की माफी मांगनी है। पिछले अंक मे जिस कविता को महादेवी जी की कविता के रूप मे छापा था वह दरअसल उनकी नहीं, प्रतिष्ठित दलित कवि, सुदेश तंवर जी, की है लेकिन कई कविता-संग्रहों मे इसे महादेवी जी की कविता के रूप मे प्रकाशित किया गया है। हमने तंवर जी से भी माफी मांग ली है और उन्होने माफ करते हुए हमे अपनी तमाम कविताओं को छापने की अनुमति भी दे दी है।
पिछले हफ्ते चुनाव नतीजो से भरे रहे हैं। अमेरिका का चुनाव काफी रोचक रहा। अंत मे डेमोक्रटिक पार्टी की जीत हुई और इसके लिए काली नस्ल के लोगों का अद्धभूत समर्थन और वामपंथी विचारधारा के डेमोक्रेटिक नेताओं का अथक परिश्रम काफी हद तक जिम्मेदार था। अब जीतने वाले इन बातों को याद रखेंगे, यह देखने की बात है। अभी तो हारे हुये ट्रम्प अपनी हार को ही मानने के लिए तयार नहीं हैं और वे अमेरिकी प्रजातन्त्र का किस हद तक मटियामेट करेंगे, यह भी देखने की बात है।
बहुत ही उत्साहित करने वाला चुनाव नतीजा बोलिविया मे MAS पार्टी की जबरदस्त जीत का रहा। वामपंथी और पहले मूलनिवासी राष्ट्रपति, मोरालेज, को अमरीका के इशारे पर देश छोड़ने के लिए मजबूर करके एक दक्षिणपंथी सरकार को जबरन बैठा दिया गया था जिसने तमाम जन-विरोधी नीतियों को लागू करने की पूरी कोशिश की। बोलिविया प्राकृतिक सान-साधनो मे समृद्ध बहुत गरीब लोगों का देश है। ईवो मोरालेस ने इन संसाधनो की विदेशी कंपनियों द्वारा लूट पर रोक लगाकर उनको अपने खिलाफ सक्रिय करने का काम किया था। जिस दिन उनको बोलिविया छोड़ना पड़ा, उसी दिन टेसला कंपनी जो बिजली द्वारा चलने वाली वाहन बनाने वाली कंपनी है, उसके शेयर-कीमत मे जबरदस्त उछाल आया क्योंकि उसकी बैटरी के लिए महत्वपूर्ण लिथियम बोलिविया मे बड़ी मात्र मे पायी जाती है और अब उस पर कब्जा जमाना आसान हो गया। लेकिन जिस दिन MSA को भारी बहुमत मिली, उसी दिन टेसला के शेयर भी लुढ़के। यह हमे बताता है की ‘प्रजातन्त्र के खेल’ मे पर्दे के पीछे छिपे पूंजीपति किस तरह अपनी कठपुतलियों को नचाते हैं! 9 नवम्बर को ईवो मोरालेस बोलिविया लौटे और गरीब जनता, खास तौर से महिलाएं जिन्होने उनके लौटने को संभव करने मे भारी भूमिका अदा की थी, उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था।
नवंबर के इस महीने मे हमने दो महत्वपूर्ण घटनाओं को याद करने का काम किया है - ‘‘भारत की कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना के 100 वर्ष‘‘ और ‘‘महान रुसी क्रांति‘‘। इन दोनों घटनाओं ने महिला मुक्ति के आंदोलन का मार्ग स्पष्ट करने और उसे पूरी दुनिया मे आगे बढ़ाने मे जो योगदान किया है उसे पूरी तरह से आज भी नहीं समझा गया है। हमारे संगठन के नेताओं ने इन दोनों घटनाओं के सिलसिले मे आयोजित तमाम आन-लाइन कार्यक्रमों मे भाग लेकर इस विचार पर अपने विचारों को प्रभावशाली तरीके से जाहिर किया है। हमने इस न्यूजलेटर मे का सुहासिनी चट्टोपाध्याय के बारे मे थोड़ी जानकारी देने की कोशिश की है। वे भारत की कम्युनिस्ट पार्टी की पहली महिला सदस्य थी और सोवियत यूनियन के शुरुआती दिनों मे उन्होने वहाँ काफी समय बिताया था। हमारी कोशिश रहेगी की हर अंक मे हम किसी न किसी भारतीय महिला क्रांतिकारी की जानकारी दें।
‘मैं जी नहीं सकती हूँ क्योंकि मैं पढ़ नहीं सकती हूँ’ - क्या इन शब्दों को देश के हाकिम सुन रहे हैं। इन शब्दों को लिखकर, अपने माँ-बाप से माफी मांग कर, तेलंगाना की गरीब दलित घर मे पैदा, भूमिका (असली नाम नहीं) ने अपनी जान दे दी। वह प्रतिभाशाली छात्रा थी जिसने दिल्ली के आला दर्जे के कालेज ‘‘एलएसआर‘‘ मे छात्रवृती के सहारे प्रवेश पाया था। लाक डाउन मे उसकी पढ़ाई ठीक से नहीं हो पा रही थी क्योंकि उसके पास लैप टाप नहीं था। हास्टल से कालेज का प्रशासन सारी बच्चियों को निकालने का फैसला कर चुका था और उसके लिए नवंबर के बाद किराये पर कमरा लेकर पढ़ना असंभव था। उसकी छात्रवृती का पैसा भी नहीं पहुंचा था। चारों तरफ से हारकर, वह संस्थागत उदासीनता की शिकार बनी और रोहित वेमुला की याद फिर से ताजा हुई। दिल्ली और एस एफ आई के नेताओं ने भूमिका की इस हत्या की निंदा करते हुए न्याय की मांग उठाई है। लेकिन, दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है की हमारे प्रधान मंत्री, शिक्षा मंत्री सब मौन हैं। मनु के प्रति उनकी निष्ठा उनका मुंह बंद किए हुए है।
जो विषय आज भी हमारे हृदय को चीरने का काम कर रहा है, हमे विचलित कर रहा है और हमे आक्रोशित कर रहा है उसे इस संपादकीय के अंत के लिए ही रखा है। हमारी हाथरस की बहन आज भी हमसे न्याय की लड़ाई को जारी रखने की मांग कर रही है। उत्तर प्रदेश की मनुवादी सरकार अपनी पूरी ताकत आरोपियों को बचाने मे लगा रही है। हम भी तय कर लें की न्याय की लड़ाई को हम आपने साथ और तमाम संगठनों को जोड़कर अंत तक लड़ेंगे।
आप सबको दीपावली की शुभ कामनाएं !! अंधकार मे भी हमारी एकता, हमारी ताकत और हमारा संघर्ष दिया जलाकर रौशनी लाएगा !!
सुभाषिनी अली